शिमला। मेजर धनसिंह थापा परमवीर चक्र से सम्मानित नेपाली मूल के भारतीय नागरिक थे। उन्होंने चीन की सेना से भीषण युद्ध लड़ा था। उन्हें दुश्मन सेना ने तीन साथियों सहित युद्ध बंदी बना लिया था।
बना लिए गए थे युद्धबंदी...
शिमला के धनसिंह थापा ने लद्दाख में मोर्चा संभालते हुए सैकड़ों चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। मेजर धन सिंह थापा अगस्त 1949 में भारतीय सेना के आठवीं गोरखा राइफल्स में कमीशन अधिकारी के रूप में शामिल हुए थे। थापा ने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान लद्दाख में चीन की सेना का बहादुरी से सामना किया था। लद्दाख के उत्तरी सीमा पर पांगोंग झील के पास सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चुशूल हवाई पट्टी को चीनी सेना से बचाने के लिए सिरिजाप घाटी में गोरखा राइफल्स की कमान संभाली।
तबाह हो गई थी भारतीय चौकी
12 अक्टूबर 1962 को सिरिजाप वन चौकी में प्लाटून सी में मेजर धन सिंह थापा ने दुश्मनों से युद्ध लड़ा। 20 अक्टूबर 1962 को सुबह छह बजे एक बार फिर पूरी ताकत से चीन के सैनिकों ने सिरिजाप चौकी पर हमला कर दिया। भारतीय चौकी तबाह हो गई और कई जवान शहीद हो गए। इस चौकी पर चीन के सैनिकों का नियंत्रण हो गया और उन्हें तीन साथियों के साथ युद्ध बंदी बना लिया गया।
चकमा देकर भाग आए थे
वह चकमा देकर भाग निकले। कई दिनों पहाड़ों में भटकते रहने के बाद थापा भारतीय सीमा में घुस पाए। दुश्मनों से वीरता से लड़ने के कारण उन्हें सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र देकर सम्मानित किया गया। वे सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल के पद से रिटायर हुए। इसके बाद सहारा ग्रुप में अजीवन डायरेक्टर रहे।